• जिसको दुर्लभता का भान होता है वह प्रमादी नहीं होता, जिसको सरलता से कोई दुर्लभ वस्तु मिल जाती है वह उसका मूल्यांकन ठीक से नहीं कर पाता, अन्यथा, इस त्याग मार्ग की एक-एक घड़ी कितनी अनमोल है यह मरण निकट आने पर समझ में आता है।
जीवन किसी को एक बार तोड़ने की कोशिश करता है तो किसी को अनेक बार; न टूटना जीने की कला है।
हमारी भीतरीं पीड़ाओं का प्राय: यही कारण होता है कि जहाँ झूठा प्रेम भी मिलना कठिन है वहाँ हम सच्चे प्रेम की आस लगाकर धोखा खा बैठते हैं ।
तनाव की उतावली में सही या गलत का फैसला कभी मत करना। तनाव स्वयं समस्या है, अत: वह समाधान कैसी दे सकती है?
यदि हम विनम्र होकर एक-दूसरें का भला सोचने लग जाए और आपसी दुश्मनी भूलकर भगवान् के सन्देश को जन जन तक पहुँचाए तो पूरे विश्व में वो वातावरण बन सकता है जो आज तक नहीं बना।
मुसीबत को बुलाइये मत, आ जाए तो धबराइये मत।
अपने भ्रम को भ्रम समझ लेना, समझदारी की शुरूआत है।
गलतियाँ अनुभव बढ़ाती हैं, अनुभव गलतियाँ घटाते हैं।
अपना भविष्य अपने वर्तमान विचारों से बनता है, अत: अपना भविष्य बनाना किसी दूसरे के हाथों में नहीं है।
परछाई को अंधकार समझना भ्रम है क्यों कि वह तो प्रकाश की उपस्थिति का संकेत है।
जहाँ ज्ञान के साथ विनय और वात्सल्य की शिक्षा नहीं दी जाती, वहाँ से प्राप्त हुआ ज्ञान अन्ततः विष का काम करता है।
अच्छाई और बुराई की शक्तियाँ बराबर होती हैं; बस जीत केवल अच्छाई की होती है।
दिशा सही होने से दशा सही हो जाती है और दृष्टि सही होने से सृष्टि सही हो जाती है।
हमारी जितनी शक्ति दूसरों का बुरा सोचने में खर्च हो जाती है यदि वह अपना भला करने में लग जाए तो दुनिया में एक नयी रौनक आ सकती है।
बेरहम इंसान को ऊपरवाले से रहम की भीख माँगने का क्या हक़ है?
किसी सुविधाभोगी को आज तक सच्चा सुख नहीं मिला।
मन की शक्ति और भगवान् की भक्ति के समक्ष संकट की शक्ति कब तक टिकेगी?
पैसा क़िस्मत का साथी है, आदमी का नहीं।
पक्षाग्रह के सिंहासन पर बैठ कर सत्य का निर्णय संभव नहीं है।
अभिमान का नशा कर्मों की मार से उतरता है।
ग़म को नशे से भुलाने की बजाय मुस्कान के साथ सहना सीख लें, तो ज़िंदगी ग़मगीन नहीं बनेगी।
परेशान मत होइये; वसूली जारी है।
भगवान् मार्ग बता गये हैं, भक्त को मंज़िल तय करनी है।
लुटने के बाद कष्ट होता है और त्यागने के पश्चात् आनन्द; जीवन में थोड़ा-बहुत त्याग ज़रूरी है।
साँसों का क्या भरोसा? यदि छोड़ने के बाद वापस न आयी, तो जोड़ा हुआ सबकुछ पड़ा रह जायेगा।
सब के अन्दर प्रेम और करुणा जागृत हो जाए तो फिर दुनिया बदल सकती है।
सभी को गलत समझने वाला कितना सही होगा?
जिसके पास सत्य होता है वह अकेले होते हुए भी निर्भीक होता है
जिसके पास सत्य होता है वह अकेले होते हुए भी निर्भीक होता है
दुष्प्रचार से छवि बिगड़ सकती है , व्यक्ति नहीं।
यदि आपका मन आपके लक्ष्य पर स्थिर है, तो आप जहाँ भी रहे आपको कोई रोक नहीं सकता .
एक व्यक्ति यदि टेड़ा-मेड़ा चल रहा है तो उसको देखकर हँसना बहुत सरल है लेकिन उसके जूते पहन कर सीधे चलना बहुत ही कठिन है।
किसी की भी निंदा करने से पहले सोच ले यदि मैं उसके स्थान पर होता तो मैं क्या करता?
जब तक तेरी इंद्रिय काम करती है , जब तक तेरी शरीर कुटी में बुढ़ापे की आग नहीं लगी और जब तक तेरी बुद्धि ठीक है तब तक तू सोच ले क्या करना है? (आचार्य कुंद -कुंद स्वामी)
जटिलता और कुटिलता साधक के लिए बाधक हैं।
साधना स्पर्धा नहीं है।
ध्यान से सुख भी, दुख भी और परम सुख भी प्राप्त होता है, तो विवेकी जन किसका ध्यान करें?
ध्यान से शक्ति केंद्रित हो जाती है और केंद्रित हुई शक्ति से कार्य हो जाते हैं।
कुछ लोग वातावरण बदलने में अपनी शक्ति व्यर्थ ही खर्च कर देते हैं, आप लोगो के हृदय बदल दो, वातावरण अपने आप बदल जाएगा।
सब के अन्दर प्रेम और करुणा जागृत हो जाए तो फिर दुनिया बदल सकती है।
जिसके पास सत्य होता है वह अकेले होते हुए भी निर्भीक होता है।
जाग्रति के बाद हर घटना उनत्ति का ही कारण हो जाती है।
एक ही दृश्य सकारात्मक, नकारात्मक एवं समदृष्टि से देखने पर भिन्न दिखाई पड़ता है।
यदि मानव मतभेद रखते हुए भी मन भेद न रखे तो आज भी सब एक हो सकते है।
हृदय और बुद्धि का संतुलन महापुरषो के पास होता है।
आवेश ममहत्वपूर्ण नहीं होता,उसकी अभिव्यक्ति का ढंग महत्वपूर्ण होता है।
जब इच्छा विश्वास में बदल जाती है, तब कार्य सिद्धि होती है।
ईर्ष्या केवल वही करता है जिसमें आत्म विश्वास की कमी है।
जिसके पास सत्य होता है उसके पास आत्मविश्वास अवश्य होता है।
विद्वत्ता तभी सार्थक होती है ,जब आचरण निर्मल होता है।
कल्याण के अभिमुख प्राणी के जीवन में जो भी होता है उसमें उसकी आध्यात्मिक उन्नति का अवसर छिपा होता है।
दुःख को आते-जाते हुए देखना साधना है और उसे भोगना कषाय।
बाहर की घटना से प्रभावित होने पर भीतर जो भी घटना होती है, वह परेशानी का मूल है।
परेशानी का कारण घटना नहीं, प्रतिक्रिया है!
विनय में गुणों और गुणी दोनों का आदर होता है।
असाध्य कुछ भी नहीं है,जन्म-जरा-मरण भी साध्य है!
“ह्रदय परिववर्तन को सुधार कहते हैं और यदि वो ह्रदय परिवर्तन आगम सम्मत हो तो कल्याणकारी है और व्यक्ति सम्मत हो तो अकल्याणकारी है”
जीवन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने भावों की स्वच्छ्ता अपेक्षित है।
जो हो रहा है उसे होता हुआ देखना ज्ञायक -भाव है, उसे देख भला-बुरा मानना पर-परिणति है।
असत्य को असत्य जान कर भी उसे छोड़ना यदि अपनी प्रतिष्ठा के विरूद्ध प्रतीत हो ,तो समझना चाहिए कि हम सत्य के नहीं ,स्वर्थ और प्रतिष्ठा के पुजारी है।
जो नज़रिया दर्द पैदा करे,उसे बदल क्यों न दें?
आदर के पात्र आदर नहीं चाहते।
हर समस्या में एक पुरस्कार छुपा होता है।
शक्ति होने पर भावना नहीं एवं भावना होने पर शक्ति नहीं रहती अतः शक्ति के साथ भावना का संगम बना लेना मनुष्य की बुद्धिमानी है।
जो धर्म की शरण में आता है, वह कर्म के ऋण से क्रमशः छूटता है।जो कर्म अन्य को दस जन्म तक रुलाता, वह उसे मात्र दस दिन रुलाता है।
मुसीबत बहादुरों को मजबूत बनाती है और कायरों को तोड़ डालती है।
मुसीबतें हमारी तरक्की की उड़ान का हिस्सा है, वो बेचारी हमें तोड़ने की बजाय हमारे हौंसले और बुलंद कर जाती हैं।
निंदा निन्दक का परिचय है।
विश्वस्त होना प्रिय होने से बेहतर है।
जीवन रूपी संपत्ती रो-रो कर दिन काटने के लिए नही है।
पाप सुविधा में नहीं, असुविधा में कटते हैं।
महापुरुष शरणागत को भी शरणागत होने का अहसास नहीं करने देते।
क्रोध,मूर्खता का झटका है।
ईर्ष्या, खुदपर अविश्वास है।
नि:स्वार्थ होना ही वास्तविक प्रेम का लक्षण है।
आशा, निराशा की भूमिका है।
जितने संपर्क, उतनी चिन्ताएँ।
सहजता ही सुंदर है।
जीवन के उतार-चढ़ाव अपने क़िस्से के हिस्से हैं।
प्रतिकूलता सबसे बड़ा शिक्षण स्थान है।
क्रोध विवेक की आँख को फोड़ डालता है।
जितनी जटिलता, उतनी अशान्ति।
परिस्थिति कर्माधीन है, मनःस्थिति स्वाधीन है।
सरस्वती के भक्त लक्ष्मी के लिए नहीं रोते ।
सहानुभूति देनेवाला लेनेवाले को दुर्बल बनाता है ।
सहानुभूति अथवा वात्सल्य चाहने अथवा माँगनेसे नहीं मिलते ; देने से मिलते है । इनकी चाह कभी -कभी घातक चक्र बन जाती है ।
नाम चाहने वालों का नाम अमर नहीं होता ।
बुद्धि का कार्य बुद्धि से और ह्रदय का कार्य ह्रदय से करने से जीवन संतुलित रहता है ।
पात्र लोभी नहीं होते और लोभी पात्र नहीं होते ।
मन को भारी मत बना , मत बदले की सोच । जो कषाय का दाग़ है , उसे क्षमा से पोछ ।।
ज्ञान की प्यास आगम से बुझती है ।